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  • क्या आपने कभी बीकानेर का कैमल फैस्टिवल देखा है?

    क्या आपने कभी बीकानेर का कैमल फैस्टिवल देखा है?

    एक स्तुति/गीतिकाव्य/प्रशंसा रेगिस्तान के जहाज़ के नाम। भारतीय संस्कृति का देश व्यापी और विशिष्ट उदाहरण है बीकानेर का कैमल-फैस्टिवल, जिसमें धर्म-जाति और क्षेत्रों की कोई बंदिशें या बॉर्डर नहीं है। राजस्थान सरकार के पर्यटन विभाग द्वारा इस उत्सव की शुरूआत की गई थी जो कि पूर्णतया उत्साह और खुशी से भरपूर होता है और ‘रेगिस्तान के जहाज’ ऊँट को समर्पित है। प्रतिवर्ष यह एक काव्यात्मक कल्पनाओं से परिपूर्ण और भरोसेमन्द सहयोगी ऊँट के समर्पण में मनाया जाने वाला, राजस्थान की छवि को दर्शाने वाला उत्सव है।

  • बिकानेर की उत्पत्ति

    बिकानेर की उत्पत्ति

    इतिहास के अनुसार, महाराजा गंगासिंह जी द्वारा जब इम्पीरियल स्टेट आर्मी (बीकानेर) का गठन किया गया तो ‘गंगा रिसाला’ नाम से ऊँटों की (सवारों के साथ) एक फौज़ तैयार की गई। ऐतिहासिक वर्ल्ड वॉर प्रथम और द्वितीय तथा भारत-पाक युद्ध के दौरान भी ऊँट-सवारों की फौज ने अपने युद्ध कौशल का प्रदर्शन किया तथा आज भी ‘‘बॉर्डर-सिक्योरिटी-फोर्स ऑफ इण्डिया’’ ने अपने कैमल-ट्रुप को युद्ध के लिए तैयार कर रखा है। जूनागढ़ फोर्ट के शाही वातावरण में, दो दिन का यह ‘कैमल-फैस्टिवल’, सजे-धजे ऊँटों की परेड से शुरू किया जाता है। उसके बाद, विभिन्न शानदार प्रसंगों के साथ, ऊँटों के हुनर दर्शाने वाले करतब भी दर्शकों के लिए प्रस्तुत किए जाते हैं जिनमें मुख्य हैं - कैमल डान्स, कलात्मक फर कटिंग, कैमल एक्रोबैटिक्स (क़लाबाज़ियाँ), सर्वश्रेष्ठ नस्ल तथा ऊँटनी का दूध निकालने की प्रतियोगिता।

  • अनुभव करने के लिए बहुत कुछ है

    अनुभव करने के लिए बहुत कुछ है

    स्थानीय लोगों के लिए शान और गर्व के प्रतीक हैं ये ऊँट, जिन्हें उत्साहित करके मैदान में लाया जाता है, जहाँ ये दर्शकों के सामने अपनी ख़ूबसूसती को एक दूसरे से बढ़कर दिखाने की कोशिश करते हैं। कमर में करधनी, गले में रंग-बिरंगे मोतियों की मालाएं, पैरों में छमछम करते घुंघरू और पायल पहने जब यह दुल्हन की तरह सज कर मैदान में आते हैं तो अभूतपूर्व नज़ारा होता है, जिसे देशी व विदेशी पर्यटक तथा फोटोग्राफर्स अपने कैमरों में क़ैद करने से नहीं चूकते। कैमल फैस्टिवल में ऊँटों की ख़रीद-फरोख़्त (क्रय-विक्रय) भी की जाती है, जहाँ पर्यटक तथा व्यापारी इकट्ठे होकर यह दृश्य देखते हैं। राजस्थान में विशेषकर बीकानेर के खान-पान और संस्कृति का भी लुत्फ इस फैस्टिवल में उठाया जा सकता है। बीकानेर ज़िले के संगीत और नृत्य देखने के साथ ही, आप यहाँ के विशेष व्यंजनों जैसे - रसगुल्ले, भुजिया, पापड़ और ऊँटनी के दूध की चाय व मिठाइयों का भी लुत्फ ले सकते हैं। फैस्टिवल के दूसरे दिन आपको राज्य के उत्कृष्ट कलाकारों द्वारा फायर डांस (अग्नि पर नृत्य) तथा कठपुतली का तमाशा भी दिखाया जाता है। इसके साथ ही इस मनोरंजक उत्सव का रंग-बिरंगी आतिशबाजी के साथ समापन होता है, जो कि आकाश को चमकीले और रंगीन सितारों से भर देती है। इस रेगिस्तानी शहर को देखने का यह उत्तम अवसर होता है। अगले वर्ष यानी 2019 में इस कैमल उत्सव को आत्मसात करने की तारीखें 12 व 13 जनवरी रहेंगी। आइए, देखिए और अपने उत्साहपूर्ण सहयोग से इस उत्सव को परिपूर्ण कीजिए।

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